परोपकारिता की पराकाष्ठा | प्रियंका जायसवाल
परोपकारिता की पराकाष्ठा प्रियंका जायसवाल द्वारा रचित एक समकालीन कथा साहित्य है जो परोपकार के भाव पर केंद्रित है. यह कहानी मुख्य रूप से माघव के पात्र के अत्यधिक परोपकार करने के स्वभाव के इर्द गिर्द घूमती है. माघव अपने माता पिता सूरज व रोशनी की तीन संतानों में से एक है. उसका एक बड़ा भाई संतोष व छोटी बहन करुणा हैं. कहानी इन तीन बच्चों की बाल अवस्था से उनके प्रोढ़ होने तक का लेखा जोखा प्रस्तुत करती है. माघव एक नेकदिल व्यक्ति है परन्तु उसकी परोपकारिता उसके घरवालों को कदाचित नहीं भाती। इसके बावजूद भी वह लोगों की मदद करना नहीं छोड़ता.
कहानी समाज के अन्य पहलुओं पर भी प्रकाश डालती है. जैसे की रंगभेद, आर्थिक व्यवस्था, स्त्री का शोषण, समाज की रूढ़ियाँ, लोभ, इत्यादि. यह पुस्तक हिंदी साहित्य में लेखिका द्वारा एक उल्लेखनीय प्रयास है. यह जितना अपने मुख्या पात्रों की कहानी बतलाती है, उतना ही अन्य सहायक पात्रों की बात सामने रखती है. माघव की परोपकारिता की पराकाष्ठा वाकई में हमें झकझोरती है. उसका अंत में उठाया कदम अवास्तविक प्रतीत होता है. वह ये भी सोचने पर विवश कर देता है कि यदि हम सभी एक दूसरे की निस्वार्थ भाव से मदद करें, एक दूसरे का हाथ बढ़ाएं तो वास्तव में समाज कितना अधिक उन्नत हो सकता है.
परोपकारिता की पराकाष्ठा एक सरल व पठनीय पुस्तक है. हालाँकि व्याकरण की अशुद्धियों से कहीं कहीं पढ़ने में बाधा आती है. इस विषय पर काम करके पुस्तक अधिक सुन्दर हो सकती है. इसके साथ ही कहानी थोड़ी भागती सी लगती है जैसे एक ठहराव की कमी है. एक बार पुनः पुस्तक को संपादन की आवशयकता है जिससे उसकी पूर्ण सरंचना में थोड़ा सुधार किया जा सके.